नई दिल्ली-देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में ऐतिहासिक बदलाव का साक्षी बना भारत मंडपम, जहां 1 जुलाई से 6 जुलाई 2025 तक नए आपराधिक कानूनों के लागू होने की पहली वर्षगांठ पर एक सप्ताहव्यापी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। यह प्रदर्शनी भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम जैसे तीन नए कानूनों के सफल कार्यान्वयन की दिशा में उठाए गए कदमों और तकनीकी प्रगति को दर्शाती है।
दिल्ली पुलिस के जॉइंट सीपी (क्राइम) सुरेंद्र कुमार ने बताया कि यह प्रदर्शनी एक इमर्सिव अनुभव के रूप में डिज़ाइन की गई है,जो किसी आपराधिक मामले की शुरुआत से लेकर अंतिम अपील तक की यात्रा को ऑडियो-विजुअल, एनिमेशन और लाइव एक्टिंग के ज़रिए सजीव करती है।
प्रदर्शनी को नौ विषयगत स्टेशनों में विभाजित किया गया है, जो आपराधिक न्याय प्रणाली के विभिन्न चरणों को दर्शाते हैं। प्रत्येक स्टेशन यह बताता है कि कैसे नए कानूनों के तहत डिजिटल टूल्स और तकनीकी नवाचार को संस्थागत प्रक्रियाओं से जोड़ा गया है।
फोरेंसिक टीम की अनिवार्य भागीदारी: 7 साल से अधिक सज़ा वाले मामलों में वैज्ञानिक जांच को मज़बूत करने के लिए अब अपराध स्थल पर फोरेंसिक विशेषज्ञों की उपस्थिति ज़रूरी कर दी गई है।
ई-साक्ष्य और ई-फोरेंसिक 2.0: डिजिटल साक्ष्य के संग्रह और विश्लेषण में पारदर्शिता व तेजी लाने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का समावेश।
मेडलेएपीआर एप्लीकेशन: अस्पतालों से एमएलसी और पोस्टमार्टम रिपोर्ट की सीधी डिजिटल ट्रांसमिशन।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए गवाही, NAFIS और चित्रखोजी तकनीक,और अनुपस्थिति में मुकदमा चलाने के प्रावधान – सब मिलकर एक आधुनिक, पीड़ित-केंद्रित और तेज़ न्यायिक प्रक्रिया की ओर संकेत करते हैं।
यह प्रदर्शनी आम जनता, कानून प्रवर्तन एजेंसियों, न्यायिक अधिकारियों, विधि छात्रों, और नागरिक समाज के सभी हितधारकों के लिए खुली है। इसका उद्देश्य नए कानूनी ढांचे के प्रति जागरूकता फैलाना और यह दिखाना है कि भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली अब तकनीक के साथ कदमताल कर रही है।
प्रदर्शनी यह स्पष्ट करती है कि भारत की न्याय प्रणाली अब “सजा नहीं, न्याय सुनिश्चित करने” की ओर अग्रसर है, जहां पीड़ितों के अधिकार, साक्ष्य-आधारित जांच और डिजिटल दक्षता को प्राथमिकता दी जा रही है।
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