चोरी, लूट और डकैती ऐसे अपराध हैं जो चल संपत्ति के अपने मूल स्थान से हटने, संपत्ति के मालिक से असहमति और साथ में बेईमानी के आशय से किये जाते हैं।
ये सभी अपराध काफी प्रचलित हैं और अकसर इस तरह की घटनाएं देखने सुनने को मिल जाती हैं।
आइये देखते हैं चोरी और डकैती क्या हैं और इनके बीच क्या अंतर है ?
चोरी किसे कहते हैं
हमारे समाज में चोरी एक बहुत ही सामान्य और बहुत ही प्रचलित अपराध है जो अकसर घटित होती है।
चोरी मानव सभ्यता के सबसे पुराने अपराधों में से एक है। कई बार तो चोरी हमारे आँखों के सामने से हो जाती है जैसे कोई किसी अन्य की अनुपस्थिति में उसका सामान लेकर भाग गया।
चोरी को हमारे कानून के हिसाब से परिभाषित किया गया है और उसके लिए सजा भी निर्धारित की गयी है।
कानून के अनुसार चोरी की परिभाषा
भारतीय दंड संहिता यानि इंडियन पीनल कोड में धारा 378 में चोरी की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के कब्ज़े से उसकी सहमति के बिना कोई चल संपत्ति यदि बेईमानी की नियत से हटाता है तो यह घटना चोरी कहलाएगी। इस परिभाषा के अनुसार कोई घटना चोरी तभी कही जायेगी जब किसी चल संपत्ति को उसकी जगह से हटाया जाये, उस संपत्ति के मालिक की अनुमति के बिना हटाया जाये और तीसरी इम्पोर्टेन्ट बात बेईमानी की नियत से हटाया जाय। इनमे से एक की भी अनुपस्थिति में वह घटना चोरी के अंतर्गत नहीं आएगी। इस प्रकार चोरी की घटना में निम्न तत्व का होना अनिवार्य है
कानून के अनुसार चोरी की सजा क्या है
यदि कोई घटना चोरी सिद्ध हो जाती है तो उसपर IPC की धारा 379 के तहत सजा सुनाई जाती है। धारा 379 के अनुसार चोरी के लिए कम से कम तीन साल की सजा या जुर्माना या दोनों ही लगाया जा सकता है। यह एक संज्ञेय अपराध है। चोरी को एक समझौतावादी अपराध माना जाता है यानि सम्पति के मालिक से सुलह पर मामला ख़त्म हो सकता है। इस धारा के अनुसार यह एक गैर जमानती अपराध है। हालाँकि इसमें जमानत के लिए सत्र न्यायलय में अप्लीकेशन दिया जा सकता है।
डकैती क्या है
चोरी की तरह ही डकैती का भी सम्बन्ध चल संपत्ति, बिना अनुमति और बेईमानी से होता है। लेकिन यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि इन तीनों के साथ ही लूट का होना अनिवार्य है अर्थात इंडियन पीनल कोड की धारा 390 के अनुसार जबरन वसूली और इस प्रक्रिया में हिंसा का भय या हिंसा कारित हो या इसका प्रयत्न किया जाय। जैसे चोरी कुछ बातों के शामिल होने से लूट बन जाती है और उसी प्रकार लूट कुछ तत्वों के सम्मिलित होने से डकैती बन जाती है। हालांकि लूट और डकैती सीधे भी हो सकती है। चोरी लूट में बदल जाती है यदि उस चोरी को करने के लिए या उस चोरी से प्राप्त होने वाली संपत्ति को अपने साथ ले जाने के लिए या ले जाने के प्रयत्न में अपराधी उस उद्देशय से या स्वेच्छा से किसी व्यक्ति को मारने का या सदोष अवरोध का भय कारित करता है या ऐसा करने का प्रयास करता है। वास्तव में डकैती चोरी और लूट से बड़ी घटना है और इसी वजह से इसे IPC में चोरी से अलग स्थान दिया गया है।
कानून के अनुसार डकैती की परिभाषा
डकैती की परिभाषा इंडियन पीनल कोड के धारा 391 में दी गयी है। इस धारा के अनुसार डकैती वह घटना है जिसमे पांच या अधिक व्यक्ति एक साथ लूट करते हैं या लूट का प्रयास करते हैं। अब इसमें ये सारे व्यक्ति या तो संयुक्त रूप से लूट करते हैं या लूट का प्रयास करते हैं या उपस्थित व्यक्ति लूट करने वाले व्यक्ति की सहायता करते हैं। डकैती की घटना में इन तत्वों की अनिवार्य उपस्थिति होती है
कानून के अनुसार डकैती की सजा
इंडियन पीनल कोड की धारा 395 में डकैती के अपराध के लिए सजा का निर्धारण किया गया है। इस अपराध के लिए आजीवन कारावास या दस वर्ष का सश्रम कारावास और आर्थिक दंड दिया जा सकता है।
चोरी और डकैती में क्या अंतर है
भारतीय दंड संहिता के अनुसार चोरी का अपराध अकेला व्यक्ति भी कर सकता है किन्तु डकैती का अपराध होने के लिए कम से कम पांच व्यक्तियों की सम्मिलती अनिवार्य है।
चोरी के मुख्य तत्व चल संपत्ति, ओनर की असहमति के बिना हटाना और बेईमानी का आशय होना अनिवार्य है जबकि डकैती में इन तत्वों के साथ साथ लूट और कम से कम पांच लोगों की सम्मिलती होना अनिवार्य है।
चोरी का अपराध समझौतावादी है यानि इसमें सुलह की गुंजाईश होती है किन्तु डकैती समझौतावादी नहीं होता है।
चोरी के अपराध के लिए तीन वर्ष का कारावास या जुरमाना या दोनों लगाया जाता है जबकि डकैती के लिए आजीवन सजा या दस वर्ष कठिन कारावास के साथ जुरमाना का प्रावधान है।
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